Saturday, August 13, 2016

untitled Hindi


अजीब सी सर्दगोशी है माहौल में 
एक कोहरा जो छ्टता ही नही 
कैसे कोई देखे उसकी बेरूख़ी 
ये मिजाज़ है मौसम का 
ज़हन से हटता ही नही 

एक बर्फ है जो रूह के किनारे जमी है 
मायूस आँखों के कोरों पे एक नमी है 
ना सूरज का सेंक ना रोशनी है इधर 
जिसकी तलाश है उस धूप की कमी है 

कल वो मुझे खुशनुमा ज़िंदगी सा लगा 
आज उसके इर्द गिर्द एक उदासी छुपी है 
किस तरह कोई बदले हालत फज़ाओं के 

अभी कहाँ हवाओं के रुख़ से बर्फ हटी है